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Back to topKab Tak Sahoge (कब तक सहोगे) (Hardcover)
Description
अमानवीय अत्याचार, ऊंच-नीच का भेद-भाव, जातिवाद का जहर शोषण और भ्रष्टाचार समाज को आखिर कब तक सहने पड़ेंगे? यही प्रश्न लेखकगण अपने नाट्य-संग्रह 'कब तक सहोगे' में पाठकों से पूछ रहे हैं। एक छोटे-से 'नाट्य-संग्रह के विभिन्न विषयों में लेखकगण ने जैसे पूरी दुनिया को बेहतरीन ढंग से सजाया-संवारा है। इन विषयों में विश्व का अस्तित्व नशे का दुष्प्रभाव, नारी का शोषण, पाखंड कर्मकांड, जातीय कटुता, द्वेष, आर्थिक, सामाजिक एवं मानवीय मूल्यों का अवमूल्यन और भारतीय रेल के सामने चुनौतियां प्रमुख हैं।
पुस्तक में दिए गए नाटकों की भाषा-शैली सहज, सरल और संवाद अति संवेदनशील एवं मर्मस्पर्शी हैं। लेखन एवं प्रस्तुतीकरण का ढंग इतना स्पष्ट है कि इन नाटकों का कम समय और कम खर्चे में ही बड़ी सरलता से प्रभावशाली मंचन किया जा सकता है। इस संग्रह के नाटक निश्चय ही अध्ययन एवं मंचन दोनों प्रारूपों में पाठकों एवं दर्शकों को अभिभूत करने में सक्षम सिद्ध होंगे।